रेबीज का टीकाकरण और कुत्ते के काटने से बचाव
रेबीज एक जानलेवा बीमारी है जो संक्रमित कुत्ते के काटने या खरोंचने से फैलती है। इसका एकमात्र प्रभावी इलाज समय पर टीकाकरण है।
रेबीज का टीकाकरण:
1. कुत्तों का टीकाकरण:
रेबीज से बचाव के लिए बेसहारा कुत्तों का टीकाकरण बहुत ज़रूरी है।
भारत सरकार के पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण कार्यक्रम (LHDCP) के तहत राज्यों को एंटी-रेबीज वैक्सीन खरीदने के लिए सहायता दी जाती है।
राष्ट्रीय रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम (NRCP) के तहत रेबीज को खत्म करने के लिए कुत्ता-जनित रेबीज उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPRE) लागू की गई है।
2. मनुष्यों का टीकाकरण:
पशु चिकित्सकों और animal handlers जैसे उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों को प्री-एक्सपोज़र प्रोफिलैक्सिस (PrEP) के तहत टीके की 3 खुराक (दिन 0, 7 और 21 या 28) लेनी चाहिए।
अगर किसी व्यक्ति को कुत्ते ने काटा है, और उसे पहले टीका नहीं लगा है, तो उसे पोस्ट-एक्सपोज़र प्रोफिलैक्सिस (PEP) के तहत 4-5 खुराकें लेनी चाहिए। गंभीर घाव होने पर रेबीज इम्यूनोग्लोबुलिन (RIG) भी दिया जाता है।
पहले से टीका लगवा चुके व्यक्ति को केवल 2 खुराकें (दिन 0 और 3) ही लेनी होती हैं और RIG की आवश्यकता नहीं होती।
कुत्ते के काटने पर क्या करें:
1. घाव को तुरंत धोएं: घाव को साबुन और बहते पानी से कम से कम 15 मिनट तक धोएं।
2. चिकित्सक की सलाह: तुरंत किसी डॉक्टर या चिकित्सा केंद्र से संपर्क करें। डॉक्टर के निर्देशानुसार रेबीज का टीकाकरण और टिटनेस का इंजेक्शन लगवाएं।
3. घाव की पहचान: श्रेणी I: कुत्ते का चाटना या बिना कटी त्वचा पर संपर्क। इसमें टीकाकरण की आवश्यकता नहीं होती। श्रेणी II: त्वचा पर खरोंच या हल्की खरोंच के साथ चाटना। इसमें टीकाकरण की आवश्यकता होती है। श्रेणी III: त्वचा में गहरा घाव, खून बहना या कटे हुए घाव पर चाटना। इसमें टीकाकरण और रेबीज इम्यूनोग्लोबुलिन (RIG) दोनों की आवश्यकता होती है।
बेसहारा / आवारा कुत्तों की समस्या: एक सामाजिक और प्रशासनिक चुनौती से कैसे निबटें
भारत के कई शहरों और कस्बों में बेसहारा कुत्तों की बढ़ती आबादी एक गंभीर समस्या बन गई है। कुछ इलाकों में इन कुत्तों के कारण लोगों को आने-जाने में परेशानी होती है, बच्चों और बुजुर्गों के लिए खतरा पैदा होता है, और कई बार ये कुत्ते आक्रामक होकर लोगों पर हमला कर देते हैं। इस समस्या के मुख्य कारण हैं:
जनसंख्या में वृद्धि: बेसहारा / आवारा कुत्तों की संख्या तेजी से बढ़ती है, जिससे उनके लिए भोजन और रहने की जगह की कमी हो जाती है।
आक्रामकता: भोजन की कमी, बीमारी (जैसे रेबीज), या मनुष्यों द्वारा दुर्व्यवहार के कारण कुत्ते आक्रामक हो सकते हैं।
बीमारियों का खतरा: बेसहारा कुत्ते रेबीज जैसी जानलेवा बीमारियों के वाहक हो सकते हैं, जो इंसानों के लिए बड़ा खतरा है।
इस समस्या को मानवीय और प्रभावी ढंग से हल करने के लिए, भारत सरकार ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) नियम, 2023 बनाए हैं। ये नियम विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (WOAH) के पकड़ो-नसबंदी-टीकाकरण-छोड़ो (CNVR) दृष्टिकोण पर आधारित हैं।
समस्या का समाधान: एक व्यावहारिक दृष्टिकोण
बेसहारा कुत्तों की समस्या से निपटने के लिए एक सामूहिक और समन्वित प्रयास की आवश्यकता है, जिसमें जनता, पशु चिकित्सक और प्रशासन सभी की भूमिका हो।
प्रशासन की भूमिका:
1. एबीसी कार्यक्रम को लागू करना: I. नगरीय निकाय (Urban Local Bodies) को एबीसी इकाइयां स्थापित करनी चाहिए। II. कम से कम 70% बेसहारा कुत्तों की बड़े पैमाने पर नसबंदी (sterilization) और टीकाकरण किया जाना चाहिए। III. पशु कल्याण संगठनों के साथ मिलकर इस कार्यक्रम को लगातार चलाना चाहिए। IV. केंद्र सरकार इस कार्यक्रम के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है (प्रति कुत्ता ₹800 तक और प्रति बिल्ली ₹600 तक)।
2. बुनियादी ढांचे का विकास: राज्य-संचालित पशु चिकित्सालयों को शल्य चिकित्सा कक्ष (surgical theatres), केनेल (kennels) और रिकवरी यूनिट (recovery units) जैसी सुविधाएं विकसित करने के लिए ₹2 करोड़ तक का एकमुश्त अनुदान मिलता है।
छोटे पशु आश्रयों (animal shelters) के लिए ₹15 लाख और बड़े आश्रयों के लिए ₹27 लाख तक की वित्तीय सहायता उपलब्ध है।
3. जागरूकता बढ़ाना: सार्वजनिक जागरूकता अभियान चलाना चाहिए ताकि लोगों को एबीसी नियमों और कुत्तों के प्रति मानवीय व्यवहार के बारे में शिक्षित किया जा सके।
पशु चिकित्सकों और पशु handlers की भूमिका: एबीसी कार्यक्रम में सक्रिय भागीदारी: पशु चिकित्सकों को नसबंदी और टीकाकरण प्रक्रियाओं को कुशलतापूर्वक और सुरक्षित रूप से करना चाहिए।
पेशेवर सुरक्षा: Safety is must in handling them
a) पशु चिकित्सकों और animal handlers को जानवरों को संभालते समय व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE) पहनने चाहिए।
b) रेबीज के उच्च जोखिम को देखते हुए, उन्हें प्री-एक्सपोज़र प्रोफिलैक्सिस (PrEP) के तहत टीका लगवाना चाहिए।
c) प्रतिकूल प्रभाव या बीमारी के किसी भी लक्षण की तुरंत रिपोर्ट करनी चाहिए।
जनता की भूमिका: कुत्तों को खाना खिलाने का सही तरीका: बेसहारा कुत्तों को निर्धारित स्थानों पर खाना खिलाना चाहिए ताकि वे एक जगह इकट्ठा न हों और गंदगी न फैलाएं।
आक्रामकता को समझना: अगर कोई कुत्ता आक्रामक लगे, तो उसे छेड़ने या डराने से बचें। शांत रहें और धीरे-धीरे उससे दूर जाएं।
कुत्तों को गोद लेना: अगर संभव हो, तो बेसहारा कुत्तों को गोद लेकर उन्हें घर और प्यार दें। इससे उनकी आबादी नियंत्रित करने में भी मदद मिलती है।
पशु कल्याण संगठनों का समर्थन: स्थानीय पशु कल्याण संगठनों और प्रशासन के साथ सहयोग करें।
आवारा पशुओं (जैसे मवेशी, कुत्ते और अन्य जानवर) के नियंत्रण और प्रबंधन में स्थानीय निकायों की महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां हैं। ये जिम्मेदारियां विभिन्न संवैधानिक संशोधनों और अधिनियमों द्वारा निर्धारित की गई हैं।
संवैधानिक और कानूनी आधार
73वें और 74वें संवैधानिक संशोधन: 73वें संशोधन के अनुसार, पंचायती राज के तहत आवारा जानवरों का प्रबंधन स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी है। इसी तरह, 74वें संशोधन के अनुसार, शहरी स्थानीय निकायों (जैसे नगर निगम) की जिम्मेदारी आवारा मवेशियों और कुत्तों का प्रबंधन करना है। यह बताता है कि यह केवल एक सामाजिक समस्या नहीं, बल्कि एक कानूनी और प्रशासनिक दायित्व है।
विभिन्न अधिनियम और नियम: आवारा पशुओं से संबंधित समस्याओं के समाधान के लिए कई अधिनियमों और नियमों का पालन किया जाना चाहिए:
1. आवारा मवेशी (Stray Cattle): इनके लिए कैटल ट्रेसपास एक्ट और नगर निगम अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाती है।
2. आवारा कुत्ते (Stray Dogs): इनकी आबादी को नियंत्रित करने और रेबीज से बचाव के लिए पशु क्रूरता निवारण (PCA) अधिनियम, एबीसी (पशु जन्म नियंत्रण) संशोधन नियम 2023 के तहत काम किया जाता है।
3. वधशाला (Slaughterhouse): खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 और झारखंड नगर अधिनियम के तहत इनके विनियमन का प्रावधान है।
प्रमुख जिम्मेदारियाँ और कार्यप्रणाली
स्थानीय निकायों की जिम्मेदारियों को तीन मुख्य श्रेणियों में बांटा जा सकता है:
1. आवारा कुत्तों का प्रबंधन
आवारा कुत्तों की बढ़ती आबादी और रेबीज के खतरे को नियंत्रित करने के लिए पशु जन्म नियंत्रण (ABC) कार्यक्रम सबसे प्रभावी तरीका है।
1. एबीसी कार्यक्रम की शुरुआत: झारखंड सरकार के शहरी और आवास विभाग ने 13 स्थानीय निकायों (जिसमें सभी नगर निगम शामिल हैं) में एबीसी कार्यक्रम शुरू करने की पहचान की थी। इसके लिए उत्तराखंड सरकार के मॉडल का अध्ययन भी किया गया था।
2. निगरानी और क्रियान्वयन: इस कार्यक्रम की निगरानी के लिए राज्य एबीसी निगरानी समिति का गठन किया गया है, जिसके अध्यक्ष शहरी और आवास विभाग के सचिव हैं। हालांकि, फंडिंग की कमी के कारण यह कार्यक्रम अभी तक पूरी तरह से शुरू नहीं हो पाया है।
3. बुनियादी ढांचा: सभी जिलों में आवारा कुत्तों के टीकाकरण और नसबंदी के लिए राज्य सरकार द्वारा पशु कल्याण संगठनों (Animal Welfare Organizations) को सूचीबद्ध करना और आवश्यक बुनियादी ढांचा विकसित करना महत्वपूर्ण है।
2. आवारा मवेशियों का प्रबंधन
आवारा मवेशी यातायात और सार्वजनिक स्थानों पर समस्याएं पैदा करते हैं। इनके प्रबंधन के लिए:
आश्रय स्थल (Shelter Homes): स्थानीय निकायों को लखनऊ नगर निगम के 'कान्हा उपवन' मॉडल जैसे आश्रय गृह विकसित करने चाहिए। ये आश्रय स्थल आवारा और बचाए गए जानवरों को रखने के लिए जरूरी हैं।
गौशालाओं को बढ़ावा: गो सेवा आयोग को झारखंड के हर ब्लॉक में अधिक से अधिक गौशालाओं को पंजीकृत और मान्यता देनी चाहिए ताकि आवारा मवेशियों का बेहतर प्रबंधन हो सके।
तत्काल उठाए जाने वाले कदम
मानव-पशु संघर्ष को कम करने के लिए रांची और अन्य शहरों में तत्काल कुछ कदम उठाए जा सकते है:
जागरूकता बढ़ाना: सबसे पहले, नागरिकों और स्थानीय निकायों को इन मुद्दों के प्रति संवेदनशील और जागरूक करना जरूरी है ताकि वे सही कदम उठा सकें।
बुनियादी ढांचे का विकास: पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के तहत बने SPCA (पशु क्रूरता निवारण सोसायटी) नियम 2001 के अनुसार, सभी जिलों को पशु आश्रय स्थल विकसित करने चाहिए।
एबीसी कैंपस: देहरादून नगर निगम के मॉडल की तरह एबीसी कैंपस विकसित करना भी एक प्रभावी समाधान हो सकता है।
बेसहारा कुत्तों की समस्या का समाधान केवल उन्हें पकड़ने या हटाने से नहीं हो सकता। यह एक मानवीय और दीर्घकालिक प्रक्रिया है जिसमें एबीसी कार्यक्रम, टीकाकरण, सार्वजनिक जागरूकता और समाज की भागीदारी शामिल है। नगरीय निकाय (Urban Local Bodies) , प्रशासन, पशु चिकित्सकों और आम जनता के सहयोग से ही हम इस समस्या को प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सकते हैं और एक सुरक्षित और स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकते हैं।
Source : https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2157898
(Compiled by Dr Amit Kumar and associates)
लम्पी स्किन डिजीज (Lumpy Skin Disease)
लम्पी स्किन डिजीज (LSD) मवेशियों और भैंसों में होने वाला एक तेज़ी से फैलने वाला संक्रामक रोग है। यह बीमारी कैप्रिपॉक्सवायरस (Capripoxvirus) नामक वायरस के कारण होती है, जो पॉक्सविरिडे (Poxviridae) परिवार का हिस्सा है। इस रोग की वजह से पशुपालकों को भारी आर्थिक नुकसान होता है, क्योंकि इससे दूध उत्पादन घट जाता है, पशुओं की खाल खराब हो जाती है, और गर्भपात का खतरा भी बढ़ जाता है।
यह रोग क्यों और कैसे फैलता है?
यह एक वायरल बीमारी है जो लम्पी स्किन डिजीज वायरस (LSDV) से होती है। यह मुख्य रूप से खून चूसने वाले कीड़ों जैसे मच्छर, मक्खियों और किलनी (ticks) के काटने से फैलता है। इसके अलावा, यह रोग निम्नलिखित तरीकों से भी फैल सकता है:
सीधा संपर्क: संक्रमित पशु के त्वचा के घावों, लार, नाक से निकलने वाले स्राव या दूध के सीधे संपर्क में आने से।
दूषित सामग्री: संक्रमित पशु के इस्तेमाल किए गए चारे, पानी और उपकरणों से।
प्रजनन: संक्रमित सांड के वीर्य (semen) से प्राकृतिक गर्भाधान या कृत्रिम गर्भाधान (Artificial Insemination) द्वारा।
रोग के मुख्य लक्षण क्या हैं? (Clinical Signs and Symptoms)
संक्रमण के बाद लक्षण दिखने में 7 से 35 दिन लग सकते हैं। इसके मुख्य लक्षण हैं:
तेज बुखार: पशु को अचानक 104°F से ज़्यादा का तेज़ बुखार आता है।
त्वचा पर गांठें: शरीर पर, खासकर सिर, गर्दन, थन और जननांगों पर 10 से 50 मिमी की कठोर और गोल गांठें (nodules) उभर आती हैं।
लसीका ग्रंथियों में सूजन: कंधे और जांघ के पास की लसीका ग्रंथियां (lymph nodes) सूज जाती हैं।
अन्य लक्षण: आंखों और नाक से पानी बहना, मुंह से लार टपकना, पैरों में सूजन और लंगड़ापन।
दूध उत्पादन में कमी: दुधारू पशुओं में दूध का उत्पादन अचानक बहुत कम हो जाता है।
घाव बनना: कुछ समय बाद, ये गांठें फटकर गहरे घाव बन सकती हैं। इन घावों में जब त्वचा का एक टुकड़ा पूरी तरह गलकर बैठ जाता है, तो उसे "सिट फास्ट" (sit fast) कहते हैं।
लम्पी स्किन डिजीज के दुष्प्रभाव
यह बीमारी पशुओं के लिए बहुत कष्टदायक होती है और पशुपालकों को इससे बड़ा आर्थिक नुकसान होता है:
दूध उत्पादन में भारी गिरावट।
पशुओं की कार्यक्षमता में कमी।
नर और मादा पशुओं में अस्थायी या स्थायी बांझपन (infertility)।
गर्भवती पशुओं में गर्भपात (abortion)।
खाल की गुणवत्ता खराब होने से चमड़ा उद्योग को नुकसान।
इलाज पर होने वाला खर्च।
गंभीर मामलों में पशु की मृत्यु भी हो सकती है।
रोकथाम और उपचार (Prevention and Treatment)
इस बीमारी से बचाव और इसके इलाज के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाना ज़रूरी है।
1. रोकथाम और नियंत्रण (Prevention and Control)
टीकाकरण: स्वस्थ पशुओं को लम्पी स्किन डिजीज का टीका लगवाना सबसे प्रभावी उपाय है।
कीट नियंत्रण: पशुशाला में और उसके आसपास मच्छर, मक्खियों को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों का छिड़काव करें।
पशुओं की आवाजाही पर रोक: प्रभावित क्षेत्रों से पशुओं की खरीद-बिक्री और आवाजाही पर रोक लगाएं।
क्वारंटाइन (Quarantine): नए खरीदे गए या बीमार पशु को कम से कम 28 दिनों के लिए स्वस्थ पशुओं से अलग रखें।
साफ-सफाई: पशुशाला को साफ-सुथरा रखें और कीटाणुनाशक (disinfectant) से नियमित रूप से सफाई करें।
2. एलोपैथिक उपचार (Allopathic Treatment)
लम्पी स्किन डिजीज एक वायरल बीमारी है, इसलिए इसका कोई निश्चित इलाज नहीं है। इलाज मुख्य रूप से लक्षणों को कम करने और द्वितीयक बैक्टीरियल संक्रमण (secondary bacterial infections) को रोकने के लिए किया जाता है:
एंटीबायोटिक्स (Antibiotics): बैक्टीरियल संक्रमण को रोकने के लिए।
एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएं (Anti-inflammatory medications): बुखार, दर्द और सूजन को कम करने के लिए।
विटामिन और सप्लीमेंट्स: पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और भूख में सुधार करने के लिए विटामिन इंजेक्शन दिए जा सकते हैं।
3. नेचुरोपैथी / पारंपरिक घरेलू उपचार (Naturopathy / Ethnoveterinary Medicine)
राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) और प्रदान किए गए शोध के अनुसार, पारंपरिक हर्बल उपचार बहुत प्रभावी हो सकते हैं:
घावों पर लगाने के लिए लेप (Topical Therapy):
सामग्री:
1. नीम की पत्तियां: 1 मुट्ठी
2. तुलसी की पत्तियां: 1 मुट्ठी
3. मेहंदी की पत्तियां: 1 मुट्ठी
4. लहसुन की कलियां: 10
5. हल्दी पाउडर: 10 ग्राम
6. नारियल का तेल: 500 मिली
विधि: सभी पत्तियों और लहसुन को पीसकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को नारियल तेल में डालकर धीमी आंच पर तब तक पकाएं जब तक सारा पानी उड़ न जाए और केवल तेल रह जाए। ठंडा होने पर इसे घावों पर लगाएं। यदि घाव में कीड़े (maggots) हों, तो पहले दिन शरीफा (Anona) के पत्तों का पेस्ट या कपूर मिला नारियल तेल लगाएं।
पशु को खिलाने के लिए मिश्रण (Oral Therapy):
सामग्री:
o पान के पत्ते: 10
o काली मिर्च: 10 ग्राम
o नमक: 10 ग्राम
o गुड़: आवश्यकतानुसार
विधि: सभी सामग्री को पीसकर गुड़ में मिलाकर लड्डू बना लें। पहले दिन हर तीन घंटे पर एक लड्डू खिलाएं। दूसरे दिन से दो सप्ताह तक दिन में तीन बार (सुबह, दोपहर, शाम) एक-एक लड्डू खिलाएं। हर बार ताज़ा मिश्रण तैयार करें।
4. होम्योपैथिक उपचार
बचाव के लिए: जो पशु संक्रमित नहीं हैं, उन्हें बचाव के लिए Variolinum 200C की खुराक दिन में एक बार 5 दिनों तक दी जा सकती है।
इलाज के लिए: रोग की गंभीरता के आधार पर निम्नलिखित दवाओं का मिश्रण दिया जा सकता है:
1. बुखार और सूजन के लिए (Category 1): Variolinum 200C, Rhus Tox 200C, Dulcamara 200C, Ocimum Sanctum 30C, Thuja 200C.
2. गांठों और सूजन के लिए (Category 2): Variolinum 200C, Apis mellifica 200C, Dulcamara 200C, Ocimum Sanctum 30C, Thuja 200C.
3. घाव और अल्सर के लिए (Category 3): Variolinum 200C, Calendula off 30C, Dulcamara 200C, Acidum Nitricum 200C.
इन दवाओं को बराबर मात्रा में मिलाकर मीठी गोलियों पर डालकर दिन में दो बार 10-15 दिनों तक देने से 95% से अधिक रिकवरी दर देखी गई है।
लम्पी स्किन डिजीज एक गंभीर समस्या है, लेकिन सही जानकारी, समय पर टीकाकरण, स्वच्छता और एकीकृत उपचार (एलोपैथी, घरेलू और होम्योपैथी) के माध्यम से इस पर प्रभावी ढंग से काबू पाया जा सकता है। हमेशा एक योग्य पशु चिकित्सक से सलाह अवश्य लें।
कुत्तों में लंगड़ापन कारण और बचाव
कुत्तों में लंगड़ापन का मतलब है उनकी चाल का असामान्य होना, जिसे आम तौर पर लंगड़ाना कहा जाता है। यह किसी चोट, जानवर के काटने या आघात के कारण अचानक हो सकता है, या धीरे-धीरे भी विकसित हो सकता है।
शारीरिक लंगड़ापन : यह कुत्ते के अंगों की बनावट से संबंधित होता है, जो जन्मजात विकृति या पुरानी चोट के ठीक से न भरने के कारण होता है। इसमें लंगड़ाने में दर्द नहीं होता, लेकिन यह कंकाल प्रणाली पर तनाव डाल सकता है।
रोग-संबंधी लंगड़ापन : यह प्रकार आमतौर पर दर्द के कारण होता है, जो मस्कुलोस्केलेटल (मांसपेशियों और हड्डियों से जुड़ी) या न्यूरोलॉजिकल (तंत्रिका-तंत्र से जुड़ी) समस्याओं जैसे मोच, पंजे में चोट, सूजन या गठिया के कारण होता है।
लक्षण और संकेत: लंगड़ापन के मुख्य लक्षणों में चलने-फिरने से मना करना, कांपना, सूजन दिखाई देना, हड्डी का टूटना, पैरों को घसीटना, भारी रक्तस्राव या बुखार (>103.5°F) शामिल हैं। पैरों को घसीटने या गंभीर सूजन जैसे लक्षण दिखने पर तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।
बचाव के उपाय: बचाव के निम्नलिखित तरीके कारगर हो सकते हैं :
कुत्ते का वज़न नियंत्रित रखना।
उनके आहार में जोड़ों के स्वास्थ्य के लिए सप्लीमेंट शामिल करना।
नियमित व्यायाम सुनिश्चित करना।
खेलते समय उन पर ध्यान देना।
घर में ऐसी सतहें बनाना जो फिसलन भरी न हों।
इलाज के विकल्प: इलाज का तरीका लंगड़ापन के कारण पर निर्भर करता है और इसमें शामिल हो सकते हैं:
दवाएं: सूजन और दर्द को कम करने के लिए नॉन-स्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (NSAIDs) जैसे कारप्रोफेन या मेलोक्सिकैम।
घर में बदलाव: जोड़ों के दर्द से राहत के लिए ऑर्थोपेडिक बिस्तर और ऊंचे खाने के कटोरे उपलब्ध कराना।
जॉइंट सप्लीमेंट्स: जोड़ों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने और ठीक होने में मदद करने के लिए ग्लूकोसामाइन और कॉन्ड्रॉइटिन युक्त सप्लीमेंट्स का उपयोग करना।
सर्जरी (ऑपरेशन): फ्रैक्चर, लिगामेंट का टूटना या हिप डिस्प्लेजिया जैसी गंभीर समस्याओं के लिए अक्सर सर्जरी की आवश्यकता होती है।
यहाँ रांची में हम बहुत सारे पशु प्रेमियों को पाते हैं जो अपने पशुओं खासकर कुत्ते और बिल्लियों को अत्याधिक हिफाजत और प्रेम पूर्वक अपने घरों में रखते हैं । ये इनके अकेलेपन में साथी और परिवार में बच्चों में भी अच्छी दोस्ती निभाकर इनका दिल जीत लेते हैं। आज जब मोबाइल की रील्स और Games की लत के कारण लोग मनोवैज्ञानिक समस्यायों से जूझ रहे हैं और उन्हें एक स्वस्थ तथा निःस्वार्थ प्रेम तथा अपने पन की जरूरत होती है तो इन पशुओं की महत्व अप्रतिम रूप से सामने आता है।
आइये हम संकल्प ले कि हम यदि इन पशुओ को अपने घर में जगह देते हैं तो इनकी दैनिक खादय, मनोरंजन तथा स्वास्थ्य जरूरतों के प्रति हम जागरूक रहेंगे ।
Stored in 2 to 6 degree
Aseptic preparation
It is good if you transfuse within 4 hour. Mixing of anticoagulant by slight movement of hands while holdings in palm.
Cross matching of blood of both recipient dog and donor dog is a must.
15 to 20 days of immobilisation required for hairline fracture and sprain
It started movements