भारत में दूध को सिर्फ एक पेय पदार्थ नहीं, बल्कि संपूर्ण आहार का दर्जा दिया गया है। यह हमारी संस्कृति, स्वास्थ्य और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग है। भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है, जो वैश्विक उत्पादन में लगभग 25% का योगदान देता है। यह उपलब्धि न केवल हमें आत्मनिर्भर बनाती है, बल्कि कुपोषण जैसी गंभीर चुनौतियों से लड़ने में एक शक्तिशाली हथियार भी प्रदान करती है। आइए, गाय के दूध के महत्व और डेयरी क्षेत्र को टिकाऊ बनाने के लिए आवश्यक घटकों को विस्तार से समझें।
गाय के दूध का पोषणिक खजाना - गाय का दूध पोषक तत्वों का एक प्राकृतिक पावरहाउस है। यह हर उम्र के व्यक्ति के लिए, नवजात शिशुओं से लेकर बुजुर्गों तक, स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। इसमें उच्च गुणवत्ता वाला प्रोटीन, कैल्शियम, आवश्यक विटामिन और खनिज पाए जाते हैं।
भारतीय गायों में A 1 प्रोटीन पाया जाता है जो पाचन में सुगम है .
A1 और A2 दूध: क्या है अंतर? दूध में पाए जाने वाले प्रोटीन का लगभग 80% हिस्सा केसीन (Casein) होता है। केसीन का एक प्रमुख प्रकार बीटा-केसीन (Beta-casein) है, जो दो सबसे आम रूपों में आता है: A1 और A2। यह अंतर उनकी अमीनो एसिड श्रृंखला में एक छोटे से बदलाव के कारण होता है। A2 बीटा-केसीन को मूल प्रोटीन माना जाता है, जो हजारों साल पहले गायों में पाया जाता था। समय के साथ, यूरोपीय मवेशियों में एक आनुवंशिक उत्परिवर्तन (mutation) हुआ, जिससे A1 बीटा-केसीन का विकास हुआ।
जब हम A1 प्रोटीन वाला दूध पीते हैं, तो पाचन के दौरान यह बीटा-कैसोमॉर्फिन-7 (BCM-7) नामक एक पेप्टाइड जारी कर सकता है। कुछ अध्ययनों में इस BCM-7 को पाचन संबंधी परेशानी, सूजन और कुछ लोगों में टाइप-1 मधुमेह और हृदय रोग जैसी स्वास्थ्य समस्याओं से जोड़ा गया है। हालाँकि, इन दावों पर अभी और शोध की आवश्यकता है।
इसके विपरीत, A2 प्रोटीन की संरचना ऐसी होती है कि यह पाचन के दौरान BCM-7 नहीं बनाता है। यही कारण है कि A2 दूध को पचाने में आसान माना जाता है और यह उन लोगों के लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है जिन्हें सामान्य दूध पीने के बाद असुविधा महसूस होती है। भारत की देसी नस्ल की गायें, जैसे गिर, साहीवाल और थारपारकर, मुख्य रूप से A2 दूध का उत्पादन करती हैं, जबकि जर्सी और होल्स्टियन-फ़्रीज़ियन जैसी विदेशी नस्लों के दूध में अक्सर A1 प्रोटीन पाया जाता है।
कुपोषण के खिलाफ एक शक्तिशाली हथियार
भारत अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के बावजूद कुपोषण की समस्या से जूझ रहा है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2019-21) के अनुसार, 5 साल से कम उम्र के 35.5% बच्चे अविकसित (stunted) हैं। दूध, अपने संपूर्ण पोषण प्रोफ़ाइल और किफायती होने के कारण, इस लड़ाई में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सरकार ने भी इसके महत्व को समझते हुए मिड-डे मील (PM-POSHAN) और एकीकृत बाल विकास सेवाओं (ICDS) जैसी योजनाओं में दूध को शामिल किया है, ताकि बच्चों में प्रोटीन और कैल्शियम की कमी को दूर किया जा सके। यह न केवल उनके शारीरिक विकास में मदद करता है, बल्कि उनकी सीखने की क्षमता को भी बेहतर बनाता है।
टिकाऊ डेयरी फार्मिंग: भविष्य की आवश्यकता
बढ़ती मांग को पूरा करने और इस क्षेत्र को भविष्य के लिए मजबूत बनाने के लिए, टिकाऊ (Sustainable) प्रथाओं को अपनाना अनिवार्य है। एक टिकाऊ डेयरी फार्मिंग प्रणाली वह है जो आर्थिक रूप से लाभदायक, पर्यावरण के अनुकूल और सामाजिक रूप से जिम्मेदार हो। इसके प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं:
उन्नत पशुधन और प्रजनन (Advanced Genetics) सही नस्ल का चुनाव डेयरी फार्मिंग की नींव है। कृत्रिम गर्भाधान (Artificial Insemination) और भ्रूण प्रत्यारोपण (Embryo Transfer) जैसी तकनीकों का उपयोग करके उच्च दूध देने वाली और रोग-प्रतिरोधी नस्लों को विकसित किया जा रहा है। राष्ट्रीय गोकुल मिशन जैसी सरकारी पहल स्वदेशी नस्लों के संरक्षण और विकास पर जोर दे रही है।
बेहतर पोषण और चारा प्रबंधन (Better Nutrition & Fodder Management) पशुओं का स्वास्थ्य और दूध उत्पादन सीधे तौर पर उनके आहार पर निर्भर करता है। गुणवत्तापूर्ण चारे की कमी एक बड़ी चुनौती है। हाइड्रोपोनिक चारा (Hydroponic Fodder), अजोला की खेती (Azolla Cultivation), और टोटल मिक्स्ड राशन (TMR) जैसी नवीन तकनीकें कम लागत पर पौष्टिक चारा उपलब्ध कराने में मदद करती हैं।
प्रौद्योगिकी का समावेश (Technological Integration) आधुनिक तकनीक डेयरी फार्मिंग को अधिक कुशल और लाभदायक बना रही है। डिजिटल ऐप्स जैसे ई-गोपाला (e-Gopala) किसानों को पशु स्वास्थ्य, पोषण और प्रजनन पर समय पर जानकारी प्रदान करते हैं। स्वचालित दूध निकालने की मशीनें और पशुओं की सेहत पर नजर रखने वाले सेंसर (RFID टैग) किसानों का समय बचाते हैं और प्रबंधन को आसान बनाते हैं।
पर्यावरण प्रबंधन (Environmental Sustainability) डेयरी फार्मिंग को पर्यावरण के अनुकूल बनाना स्थिरता का एक प्रमुख पहलू है। गाय के गोबर का उपयोग बायोगैस बनाने के लिए किया जा सकता है, जो खेत के लिए ऊर्जा का एक स्वच्छ स्रोत है और इससे उच्च गुणवत्ता वाली जैविक खाद भी मिलती है। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। पानी का सही उपयोग और अपशिष्ट का उचित निपटान पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाता है।
डेयरी क्षेत्र सिर्फ दूध उत्पादन तक सीमित नहीं है; यह करोड़ों ग्रामीण परिवारों की आजीविका, महिला सशक्तिकरण और देश की खाद्य सुरक्षा का आधार है। गाय का दूध एक किफायती और सुलभ पोषण स्रोत है जो कुपोषण को मिटाने की क्षमता रखता है। नवाचार, सरकारी नीतियों और टिकाऊ प्रथाओं को अपनाकर हम न केवल दूध उत्पादन बढ़ा सकते हैं, बल्कि एक ऐसा भविष्य भी सुनिश्चित कर सकते हैं जो आर्थिक रूप से समृद्ध, सामाजिक रूप से न्यायसंगत और पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ हो। एक मजबूत डेयरी क्षेत्र एक स्वस्थ और समृद्ध भारत के निर्माण की कुंजी है।