रांची में, जहाँ हवा में आज भी हल्की मिट्टी की खुशबू है, 'आकाशदीप' नाम का एक ऊँचा अपार्टमेंट था। इस अपार्टमेंट की सातवीं मंज़िल पर, अगल-बगल दो दरवाज़े थे— 701 और 702.
702: कैप्टन रोहन और ड्रैगन का गढ़
फ्लैट नंबर 702 में रहता था रोहन खन्ना। रोहन कोई आम लड़का नहीं था; वह 'किंगडम क्लैश' की दुनिया का 'कैप्टन रोहन' था। उसका कमरा किसी अंतरिक्ष यान के 'कमांड सेंटर' जैसा था। अँधेरे में चमकते LED लाइट्स, तीन बड़ी-बड़ी घुमावदार स्क्रीन, और एक गद्देदार 'गेमिंग चेयर' जो किसी राजा के सिंहासन जैसी लगती थी।
रोहन की उँगलियाँ बिजली से भी तेज़ चलती थीं। वह एक ही समय में डिजिटल ड्रैगन से लड़ सकता था, अपनी 'स्ट्रीम' पर दोस्तों से बात कर सकता था, और तीसरे स्क्रीन पर 'रील्स' (Reels) भी देख सकता था।
उसके माता-पिता, जो बहुत व्यस्त थे, उसे बहुत प्यार करते थे। उन्हें लगता था कि उनका बेटा एक 'टेक जीनियस' है। जब भी रोहन को गुस्सा आता या वह बोर होता, वे उसे शांत करने का सबसे आसान तरीका अपनाते— एक नया गैजेट!
"देखो बेटा, नया 'VR हेडसेट'! अब तुम सच में ड्रैगन के ऊपर बैठ सकते हो," उसके पापा ने पिछले हफ़्ते ही कहा था।
लेकिन एक राज़ था। कैप्टन रोहन, जो स्क्रीन पर पूरी सेना को हरा सकता था, असल ज़िंदगी में अपने जूतों के फीते बाँधने में गुस्सा हो जाता था। उसे बाहर की धूप से चिढ़ थी। जब उसकी माँ उससे सब्ज़ी लाने को कहतीं, तो उसे लगता था कि यह दुनिया का सबसे उबाऊ 'मिशन' है। वह 'लूडो' और 'शतरंज' भी अपने फ़ोन पर 'AI' (कंप्यूटर) के साथ खेलता था, क्योंकि असली दोस्तों के साथ खेलने में "बहुत टाइम लगता है।"
701: 'जुगाड़ू' आरव और कबाड़ का खजाना
ठीक बगल वाले फ्लैट, 701 में, आरव शर्मा रहता था। आरव का कमरा रोहन के कमरे से बिलकुल उल्टा था। वह एक 'कमांड सेंटर' नहीं, बल्कि एक 'खजाना घर' था— या कुछ लोग उसे 'कबाड़खाना' भी कह सकते थे!
दीवारों पर नक्शे टंगे थे। टेबल पर एक पुराना रेडियो खुला पड़ा था, जिसके तार मकड़ी के जाले जैसे फैले थे। एक कोने में टूटे खिलौनों का ढेर था, जिससे आरव एक रोबोट बनाने की कोशिश कर रहा था। उसके पास एक छोटा सा टूलबॉक्स था, जो उसे उसके दादाजी से मिला था, और वह उसकी सबसे कीमती चीज़ थी।
आरव के पास भी एक फ़ोन था, लेकिन वह ज़्यादातर उसके टेबल लैंप के नीचे दबा पड़ा रहता था। आरव का असली मज़ा बाहर था। वह अपार्टमेंट के गार्ड, शंकर भैया, के साथ मिलकर टूटी साइकिलें ठीक करता था। वह मिट्टी में गंदा होना, पेड़ों पर चढ़ना और पानी की खाली बोतलों से 'रॉकेट' बनाना पसंद करता था।
उसके माता-पिता हर शाम उसके साथ बैडमिंटन खेलते थे और रात को सोने से पहले उसे कहानियाँ पढ़कर सुनाते थे।
द ग्रेट टैगोर हिल चैलेंज
एक दिन, स्कूल में प्रिंसिपल ने एक बड़ी घोषणा की: "बच्चो, इस साल हम 'द ग्रेट टैगोर हिल चैलेंज' का आयोजन कर रहे हैं!"
सारे बच्चे खुशी से चिल्लाने लगे। यह रांची का सबसे बड़ा स्कूल कॉम्पिटिशन था।
"चैलेंज," प्रिंसिपल ने जारी रखा, "यह है कि दो लोगों की टीम को टैगोर हिल की चोटी पर छिपा 'खजाना' ढूँढना है। लेकिन एक शर्त है— आप किसी भी मॉडर्न गैजेट, जैसे फ़ोन या ड्रोन, का इस्तेमाल नहीं कर सकते। आपको अपना रास्ता ढूँढने के लिए एक 'हाथ से बना नक्शा' और 'पुराने जमाने का एक टूल' इस्तेमाल करना होगा।"
और फिर सबसे बड़ा धमाका हुआ। टीचर ने टीमों के नाम घोषित किए, "और हमारी आख़िरी टीम है... आरव शर्मा और रोहन खन्ना!"
आरव और रोहन ने एक-दूसरे को देखा। आरव ने मुस्कुराकर हाथ हिलाया। रोहन ने बस आँखें घुमा लीं। "एक कबाड़ी और एक गेमर? यह टीम तो पक्का हारेगी!" उसने मन में सोचा।
मिशन की तैयारी: दो दुनियाओं की टक्कर
शाम को रोहन, आरव के घर आया। वह आरव का कमरा देखकर हैरान रह गया। "भाई, यहाँ तो नेटवर्क भी ठीक से नहीं आता होगा। और यह... यह क्या है?" उसने एक अजीब सी चीज़ की तरफ इशारा किया।
"यह? यह एक 'कम्पास' (दिशा सूचक यंत्र) है," आरव ने गर्व से कहा। "और यह देखो, मैंने पुराने रेडियो के स्पीकर और एक पाइप से एक 'मेटल डिटेक्टर' बनाया है! यह खजाना ढूँढने में मदद करेगा।"
रोहन ने हँसते हुए अपना फ़ोन निकाला। "देख भाई, ये सब ड्रामा बंद कर। मेरे पास 'टैगोर हिल' का पूरा 3D मैप है। मैं एक रात में कोड लिखकर एक 'ऐप' बना सकता हूँ जो हमें खजाने की सही जगह बता देगा। टीचर को पता भी नहीं चलेगा।"
आरव ने अपना सिर हिलाया। "नहीं रोहन, यह चीटिंग होगी। और मज़ा कैसे आएगा? मज़ा तो ख़ुद ढूँढने में है!"
रोहन को गुस्सा आ गया। "मज़ा? तुम्हें इस कबाड़ में मज़ा आता है? मुझे अपना 'लेवल 90' पूरा करना है। मैं जा रहा हूँ।"
अगले दो दिन बहुत मुश्किल थे। आरव अकेले ही नक्शा बनाता रहा, उस पर निशान लगाता रहा। रोहन आता, पाँच मिनट बैठता, अपने फ़ोन पर 'रील्स' देखता, बोर होता और चला जाता। उसका ध्यान एक जगह टिक ही नहीं रहा था।
"यह कितना स्लो है," वह बड़बड़ाता। "इससे जल्दी तो मैं दस 'लेवल' पार कर लूँ।"
चैलेंज का दिन
आख़िरकार, चैलेंज का दिन आ गया। टैगोर हिल की तलहटी पर सभी टीमें तैयार थीं। आरव ने अपना भारी बैग लटकाया था, जिसमें रस्सी, पानी की बोतल और उसका बनाया 'मेटल डिटेक्टर' था। रोहन सिर्फ़ एक छोटा सा बैग लाया था, जिसमें 'जूस' का एक डिब्बा और (चुपके से लाया हुआ) उसका फ़ोन था।
"चलो!" सीटी बजी और सब दौड़ने लगे।
शुरू के दस मिनट में ही रोहन की साँस फूल गई। "यार, यहाँ कितनी गर्मी है! और ये मच्छर... मुझे नहीं खेलना। मेरा फ़ोन कहाँ है?"
"रोहन, हम आधी दूर आ गए हैं," आरव ने कहा। "और देखो, नक्शे के हिसाब से यहाँ एक पुराना कुआँ होना चाहिए।"
तभी आरव का बनाया मेटल डिटेक्टर ज़ोर से 'बीप-बीप-बीप' करने लगा।
"कुछ है! यहाँ कुछ है!" वे दोनों मिट्टी हटाने लगे। वहाँ एक छोटा, जंग लगा बक्सा था!
"वाओ! आरव, तुम तो सच में जीनियस हो!" रोहन की आँखों में पहली बार असली चमक थी।
बक्से में एक पहेली थी: "मैं वहीं मिलता हूँ, जहाँ पहाड़ की सबसे ऊँची चोटी की परछाईं, दोपहर को सोती है।"
"परछाईं? यह क्या बकवास है?" रोहन चिढ़ गया।
"रुको..." आरव ने अपना कम्पास निकाला। "हमें पहले सबसे ऊँची चोटी ढूँढनी होगी।"
जैसे ही वे आगे बढ़े, रास्ता दो हिस्सों में बँट गया। एक आसान, सपाट रास्ता था और दूसरा मुश्किल, चट्टानों भरा।
"इधर चलो, यह आसान है," रोहन ने कहा।
"नहीं," आरव ने नक्शा देखा। "नक्शे पर यह चट्टानों वाला रास्ता है। यह मुश्किल है, पर खजाना वहीं मिलेगा।"
रोहन को अपने गेम की याद आई। गेम में भी 'खजाना' हमेशा सबसे मुश्किल रास्ते पर ही मिलता था। "ठीक है... चलो! पर अगर मैं गिरा, तो मैं तुम्हें 'ब्लॉक' कर दूँगा!" वह हँसते हुए बोला।
वे चढ़ने लगे। यह रोहन के लिए बहुत मुश्किल था। उसके हाथ छिल गए, वह पसीने से भीग गया। एक बार उसका पैर फिसला, लेकिन इससे पहले कि वह गिरता, आरव ने मज़बूती से उसका हाथ पकड़ लिया।
"आराम से, कैप्टन। असली 'ड्रैगन' तो यह पहाड़ है," आरव ने मुस्कुराते हुए कहा।
रोहन ने जवाब में मुस्कुराया। पता नहीं क्यों, पर उसे अपने 'गेमिंग चेयर' से ज़्यादा यहाँ मज़ा आ रहा था।
असली खज़ाना
आख़िरकार, वे चोटी पर पहुँचे। दोपहर हो रही थी। उन्होंने देखा कि सूरज की रौशनी से एक चट्टान की परछाईं, ठीक नीचे एक घनी झाड़ी पर पड़ रही थी।
"वहाँ! वहाँ है!" रोहन चिल्लाया।
झाड़ियों के अंदर एक बड़ा लकड़ी का संदूक था। उन्होंने मिलकर उसे खोला। अंदर कोई सोना-चाँदी नहीं था। अंदर एक सुंदर सी 'ट्रॉफी' और एक बड़ा सा बोर्ड था जिस पर लिखा था:
"बधाई हो, चैंपियंस! असली खजाना यह ट्रॉफी नहीं, बल्कि आपका सफ़र, आपकी दोस्ती और आपकी हिम्मत है।"
वे दोनों हाँफते हुए एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराए।
बदला हुआ 'कमांड सेंटर'
उस दिन के बाद, फ्लैट 702 का 'कमांड सेंटर' थोड़ा बदल गया। रोहन अभी भी 'कैप्टन रोहन' था, लेकिन अब उसकी तीन स्क्रीन के बगल में, एक छोटा 'टूलबॉक्स' भी रखा था। वह आरव से 'इलेक्ट्रॉनिक्स' सीख रहा था।
और फ्लैट 701 में? आरव के कमरे में भी एक नई चीज़ थी— 'द ग्रेट टैगोर हिल चैलेंज' की चमचमाती ट्रॉफी, जिसके ठीक बगल में वह टूटा हुआ रेडियो रखा था, जिसने उन्हें जीत दिलाई थी।
शाम को अब 'आकाशदीप' अपार्टमेंट में दो बच्चे दिखते थे— एक जो जानता था कि 'गैजेट' कैसे बनाते हैं, और दूसरा जो जानता था कि उन्हें 'कमांड' कैसे करना है। और कभी-कभी, वे दोनों सब कुछ छोड़कर, मिट्टी में गंदे होने के लिए बाहर दौड़ा करते थे।